What is the Tribal Genome Project? यह सवाल इन दिनों वैज्ञानिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। भारत में पहली बार किसी राज्य ने अपनी आदिवासी आबादी की आनुवंशिक (genetic) स्वास्थ्य जरूरतों को वैज्ञानिक तरीके से समझने के लिए एक नई पहल की है। गुजरात सरकार ने देश का पहला ट्राइबल जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट (Tribal Genome Sequencing Project) शुरू किया है, जिसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों में पाई जाने वाली बीमारियों की जड़ों तक जाना और उन्हें वैज्ञानिक इलाज उपलब्ध कराना है।

शुरुआत गुजरात से: विज्ञान और मानव सेवा का संगम
गुजरात सरकार के तहत गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (GBRC) इस प्रोजेक्ट को लागू कर रहा है। इस महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा खुद राज्य के जनजातीय विकास मंत्री डॉ. कुबेर डिंडोर ने गांधीनगर में आयोजित एक उच्चस्तरीय संवाद के दौरान की। उन्होंने बताया कि यह प्रोजेक्ट न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि सामाजिक न्याय और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के लिए भी एक बड़ा कदम है।
ट्राइबल जीनोम प्रोजेक्ट का उद्देश्य
इस परियोजना के तहत, गुजरात के 17 जिलों में रहने वाले 2000 आदिवासी लोगों का जीनोम सीक्वेंसिंग किया जाएगा। इसका सीधा अर्थ है कि इन लोगों के डीएनए (DNA) का बारीकी से अध्ययन कर यह पता लगाया जाएगा कि किन-किन आनुवंशिक कारणों से वे विशेष बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
इस अध्ययन से एक रेफरेंस डाटाबेस तैयार किया जाएगा, जो आगे चलकर न केवल इलाज में मदद करेगा, बल्कि भविष्य में जनजातीय स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण में भी आधार बनेगा।
जीनोम सीक्वेंसिंग प्रक्रिया कैसे होगी?
इस प्रोजेक्ट के तहत जमीनी स्तर पर पहले सैंपल इकट्ठा किए जाएंगे। फिर अत्याधुनिक लैबोरेटरीज़ में उनकी जीनोम सिक्वेंसिंग की जाएगी। इसके लिए हाई-टेक डेटा एनालिसिस और प्रशिक्षित वैज्ञानिकों की टीम नियुक्त की गई है।
अब तक भारत में आदिवासी समुदायों के लिए ऐसा कोई विस्तृत जीनोमिक डाटाबेस मौजूद नहीं था। यह प्रोजेक्ट उस खाई को भरने जा रहा है, जिससे न केवल चिकित्सा क्षेत्र में, बल्कि नीति-निर्माण और वैज्ञानिक अनुसंधान में भी बड़ा बदलाव आएगा।
किन बीमारियों की पहचान होगी?
ट्राइबल जीनोम प्रोजेक्ट का एक प्रमुख लाभ यह होगा कि इससे आनुवंशिक बीमारियों की प्रारंभिक पहचान संभव हो पाएगी। जैसे कि:
- सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Disease)
- थैलेसीमिया (Thalassemia)
- कुछ विशेष प्रकार के कैंसर
इन बीमारियों का समय पर निदान और इलाज तभी संभव है जब उनके जेनेटिक कारणों की गहराई से जांच की जाए। यही कार्य यह प्रोजेक्ट करेगा।
प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता वाले जीन की खोज
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि कुछ आदिवासी समुदायों में प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता (Natural Immunity) भी पाई जाती है, जो अब तक आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए रहस्य बनी हुई थी। इस प्रोजेक्ट से उन जीन की भी पहचान की जा सकेगी, जिनकी वजह से ये लोग कुछ गंभीर बीमारियों से खुद-ब-खुद सुरक्षित रहते हैं। इससे न केवल उन्हें बेहतर इलाज मिल सकेगा, बल्कि इन जीन को समझकर व्यापक रूप से भी चिकित्सा पद्धति में सुधार किया जा सकेगा।
आदिवासी समुदायों को क्या मिलेगा फायदा?
इस पूरी परियोजना का सबसे बड़ा लाभ उन आदिवासी समुदायों को होगा, जिनकी स्वास्थ्य जरूरतें अब तक अनदेखी रही हैं। इसकी मदद से:
- आनुवंशिक बीमारियों की जल्दी पहचान और सटीक इलाज संभव हो सकेगा।
- इलाज को व्यक्ति विशेष के हिसाब से अनुकूल बनाया जा सकेगा (Personalized Healthcare)।
- सरकार और स्वास्थ्य विभाग की नीतियों को आधिकारिक डाटा के आधार पर तैयार किया जा सकेगा।
- भविष्य में आदिवासी स्वास्थ्य के लिए वैक्सीन और दवाओं के विकास में भी मदद मिलेगी।
क्या यह मॉडल पूरे देश में लागू हो सकेगा?
यह प्रोजेक्ट अपनी तरह का पहला है, और यदि इसकी सफलता सुनिश्चित होती है तो केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारें भी इसी मॉडल को अपनाने पर विचार कर सकती हैं। इसका सीधा लाभ पूरे देश के आदिवासी समुदायों तक पहुंचेगा। इससे न केवल उनकी जीवन गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि वे भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के फायदों से जुड़ सकेंगे।
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निष्कर्ष:What is the Tribal Genome Project
What is the Tribal Genome Project केवल एक वैज्ञानिक पहल नहीं, बल्कि यह सामाजिक समावेशिता, स्वास्थ्य सेवा की समानता और तकनीकी प्रगति का संगम है। गुजरात सरकार द्वारा शुरू की गई यह योजना आदिवासी समुदायों की जेनेटिक पहचान को समझकर उन्हें बेहतर जीवन देने की दिशा में एक मजबूत कदम है। यदि यह योजना सफल होती है, तो आने वाले वर्षों में यह पूरे भारत के लिए एक राष्ट्रीय मॉडल बन सकती है।