Vantara and Project Elephant द्वारा भारत का सबसे बड़ा हाथी सेवा प्रशिक्षण कार्यक्रम

Vantara and Project Elephant ने मिलकर भारत में हाथियों की देखभाल करने वालों के लिए अब तक का सबसे बड़ा और व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। यह पांच दिवसीय ‘वंतारा गजसेवक सम्मेलन’ गुजरात के जामनगर में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देशभर से आए हुए 100 से अधिक महावतों और हाथी सेवकों को आमंत्रित किया गया है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य हाथियों की देखभाल की गुणवत्ता को बढ़ाना, पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ना, और हाथियों के कल्याण को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना है।

इस राष्ट्रीय स्तर की कैपेसिटी बिल्डिंग पहल की शुरुआत राधे कृष्ण मंदिर में पारंपरिक ‘महा आरती’ और स्वागत समारोह के साथ हुई, जिसने पूरे कार्यक्रम को एक आध्यात्मिक और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान की। इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।

हाथी सेवकों के लिए समर्पित एक अनूठा प्रयास

Vantara

Vantara के CEO विवान करणी ने इस आयोजन के बारे में कहा,
“यह सम्मेलन केवल एक प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं, बल्कि उन लोगों को सम्मान देने का एक माध्यम है जो अपना जीवन हाथियों की सेवा में समर्पित कर देते हैं। हमारा उद्देश्य पारंपरिक अनुभव और आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों को मिलाकर एक मजबूत और संवेदनशील आधार तैयार करना है, जो हाथियों के दीर्घकालिक कल्याण के लिए आवश्यक है।”

उनके इस वक्तव्य से स्पष्ट होता है कि Vantara and Project Elephant का यह कार्यक्रम सिर्फ ज्ञान हस्तांतरण का माध्यम नहीं, बल्कि एक समर्पण और करुणा से भरा मिशन है।

व्यावहारिक प्रशिक्षण और वैज्ञानिक सत्रों का संगम

यह कार्यक्रम Vantara द्वारा संचालित Radhe Krishna Temple Elephant Welfare Trust में हो रहा है, जो कि एक गैर-लाभकारी संस्था है। सम्मेलन में प्रतिभागियों को विभिन्न क्षेत्रों में बांटकर प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिनमें शामिल हैं:

  • गजवन,
  • गजराज नगरी,
  • गणेश नगरी

यहां पर उन्हें हाथियों की रोज़ाना देखभाल, पैरों की सफाई, स्नान के नियम, सकारात्मक व्यवहार सिखाने की तकनीक, मस्टह (Musth) प्रबंधन, और आयुर्वेदिक पद्धतियों की गहन जानकारी दी जा रही है।

इसके साथ ही, विशेषज्ञों द्वारा संचालित वैज्ञानिक सत्रों में हाथियों की बायोलॉजी, तनाव की पहचान, सामान्य बीमारियां, और आपातकालीन स्थिति में पड़ी हुई हाथियों की देखभाल जैसे जरूरी विषयों पर विस्तृत चर्चा हो रही है। खास बात यह है कि इस कार्यक्रम में हाथी सेवकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि उनके कल्याण से ही हाथियों का भविष्य जुड़ा हुआ है।

अनुभव साझा करने का मंच

Vantara and Project Elephant द्वारा आयोजित यह सम्मेलन केवल प्रशिक्षण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक साझा मंच भी है जहां अलग-अलग राज्यों से आए महावत और सेवक एक-दूसरे से सीख सकते हैं। विशेष चर्चा सत्रों और चिंतन सेशनों के माध्यम से वे अपने अनुभव साझा करते हैं, चुनौतियों पर बात करते हैं, और एक-दूसरे से व्यावहारिक समाधान प्राप्त करते हैं। यह “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को भी दर्शाता है जहां ज्ञान का आदान-प्रदान होता है।

वंतारा: करुणा और संरक्षण की जीवंत मिसाल

आज Vantara में 250 से भी अधिक हाथी रहते हैं, जिन्हें देशभर से बचाकर यहां लाया गया है। इनके साथ कार्यरत 500 से अधिक प्रशिक्षित सेवक हैं, जिनमें कई ऐसे भी हैं जो कभी खुद विपरीत परिस्थितियों में थे। Vantara ने उन्हें न सिर्फ रोजगार दिया, बल्कि एक नई पहचान भी दी। यही कारण है कि वंतारा आज पशु कल्याण का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आदर्श बन चुका है।

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रहा है योगदान

Vantara and Project Elephant के इस साझा प्रयास की पहुंच केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। आने वाले समय में वंतारा कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कार्यक्रमों की मेज़बानी कर रहा है, जिनमें शामिल हैं:

  • कांगो से आए वन अधिकारियों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
  • अगस्त में होने वाला राष्ट्रीय पशु चिकित्सा प्रशिक्षण – संरक्षण मेडिसिन की भूमिका पर
  • अक्टूबर में राष्ट्रीय चिड़ियाघर निदेशक सम्मेलन

इन आयोजनों का उद्देश्य दुनिया भर के विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं और संरक्षण कर्मियों को एक साथ लाकर वन्यजीव संरक्षण के सर्वोत्तम तरीकों को साझा करना है।

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निष्कर्ष

Vantara and Project Elephant का यह संयुक्त प्रयास न केवल हाथियों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को दर्शाता है, बल्कि यह भविष्य की पीढ़ियों को एक स्थायी और करुणामयी दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा भी देता है। जामनगर में चल रहा यह सम्मेलन, भारत में हाथी संरक्षण और सेवा के क्षेत्र में मील का पत्थर बनकर उभरा है। जहां एक ओर वैज्ञानिक प्रशिक्षण है, वहीं दूसरी ओर परंपरागत ज्ञान का सम्मान भी—यह समन्वय ही इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी ताकत है।