Diamond Business मंदी में,डायमंड वर्कर के बच्चों की शिक्षा योजना क्यों हुई विफल?

Diamond business पिछले कुछ वर्षों से गहरे संकट का सामना कर रहा है। वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और बाज़ार में मांग की गिरावट के चलते, खासतौर पर गुजरात केडायमंड वर्कर पर इसका बहुत गहरा असर पड़ा है। भावनगर, सूरत, अमरेली जैसे क्षेत्रों में हजारों रत्न कलाकार और ज्वैलर्स इस व्यवसाय पर निर्भर हैं। सरकार ने उनकी सहायता के लिए हाल ही में एक शैक्षणिक सहायता योजना शुरू की, लेकिन इसका परिणाम उम्मीद से बिल्कुल अलग रहा।

भावनगर में 1 लाख डायमंड वर्कर, लेकिन केवल 6000 आवेदन!

राज्य सरकार द्वारा घोषित “डायमंड वर्कर शिक्षा सहायता योजना” का उद्देश्य उन परिवारों को राहत देना था, जो diamond business से जुड़े हैं और आर्थिक रूप से कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इस योजना के तहत, ज्वैलर्स के बच्चों को वर्ष 2025-26 के लिए ₹13,500 तक की फीस माफ़ी देने की घोषणा की गई थी। लेकिन भावनगर ज़िले की बात करें, तो यहां लगभग 1 लाख डायमंड वर्कर हैं, जबकि अब तक केवल 6000 आवेदन ही भरे गए हैं। यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि योजना जमीनी स्तर पर कितनी विफल रही है।

आवेदन की अंतिम तिथि – 23 जुलाई 2025

सरकार की योजना के अनुसार, जो रत्न कलाकार या डायमंड वर्कर अपने बच्चों के लिए शिक्षा सहायता चाहते हैं, उन्हें 23 जुलाई 2025 तक आवेदन करना अनिवार्य है। लेकिन आखिरी तारीख नज़दीक होने के बावजूद अधिकांश लोगों ने आवेदन नहीं किया है। इसका मुख्य कारण लोगों तक योजना की जानकारी का न पहुंच पाना और प्रक्रिया की जटिलता हो सकता है।

रत्नदीप योजना की तरह यह भी बन गई फ्लॉप

यह पहली बार नहीं है कि इस तरह की कोई योजना विफल हुई हो। वर्ष 2009 में शुरू की गई “रत्नदीप योजना” भी कागज़ों तक ही सीमित रह गई थी। अब 2025 में “रत्न कलाकार सहायता पैकेज योजना” को लागू किया गया है, लेकिन वह भी सही ढंग से ज़मीन पर नहीं उतर पाई है। रत्न कलाकारों का भरोसा अब सरकारी योजनाओं से उठता जा रहा है।

अर्ध-बेरोज़गारी की स्थिति में आए रत्न कलाकार

सरकार ने योजना में यह स्पष्ट किया है कि 31 मार्च 2024 के बाद नौकरी खोने वाले रत्न कलाकारों को ही लाभ मिलेगा। लेकिन जो लोग अभी भी बहुत कम वेतन पर काम कर रहे हैं (अर्ध-बेरोज़गार हैं), उनके लिए योजना में कोई ठोस प्रावधान नहीं है। ऐसे कलाकारों का सवाल उठाना बिल्कुल जायज़ है – वे आवेदन करें भी तो किस श्रेणी में?

फॉर्म भरने की रफ्तार धीमी, प्रक्रिया जटिल

राज्य सरकार ने दावा किया है कि सूरत, बोटाद, अमरेली, अहमदाबाद और भावनगर जैसे ज़िलों से करीब 88,500 आवेदन मिले हैं। लेकिन अगर देखा जाए तो यह संख्या अब भी अपेक्षा से बहुत कम है। स्थानीय संघों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि योजना की प्रक्रिया को सरल बनाने और इसकी समय-सीमा बढ़ाने की सख्त ज़रूरत है।

रणमल झिलारिया, अध्यक्ष – हीरा श्रमिक संघ, गुजरात के अनुसार:

“सरकार को योजना की अवधि बढ़ानी चाहिए, ताकि गुजरात के दूर-दराज़ इलाकों के रत्न कलाकार भी इसका लाभ ले सकें। अभी तक कई इलाकों में योजना की सही जानकारी नहीं पहुंच पाई है।”

जिला उद्योग केंद्र भावनगर की स्थिति

भावनगर जिला उद्योग केंद्र कार्यालय के महाप्रबंधक एस.बी. भाटिया का कहना है:

“हमारे कार्यालय में अब तक रत्न कलाकार सहायता योजना के तहत लगभग 6000 आवेदन प्राप्त हुए हैं। जो इच्छुक हैं, वे 23 जुलाई 2025 तक आवेदन कर सकते हैं।”

उनका यह भी कहना है कि कई लोग योजना की शर्तों और दस्तावेज़ीकरण से अनजान हैं, जिस कारण वे आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।

स्थानीय हीरा संघों की भूमिका भी सीमित

भावनगर हीरा संघ के अध्यक्ष घनश्यामभाई गोरासिया ने बताया:

“वर्तमान में योजना को लेकर कुछ काम हो रहा है, लेकिन भावनगर शहर और तालुका स्तर पर हीरा संघों द्वारा फॉर्म भरवाने की प्रक्रिया बेहद धीमी है।”

समाधान क्या है?

इस पूरे मुद्दे पर गहराई से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि diamond business की वर्तमान स्थिति और सरकारी योजनाओं के बीच एक बहुत बड़ा संचार का अंतर है। सरकार की मंशा भले ही अच्छी हो, लेकिन ज़मीनी कार्यान्वयन की धीमी गति और जागरूकता की कमी से योजना का लाभ अधिकांश पात्र लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा।

सुझाव:

  • योजना की समय-सीमा को बढ़ाया जाए ताकि और अधिक लोग आवेदन कर सकें।
  • स्थानीय संघों को जागरूकता अभियान चलाने का निर्देश दिया जाए।
  • ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया को और आसान बनाया जाए।
  • अर्ध-बेरोज़गार रत्न कलाकारों को भी योजना में शामिल किया जाए।

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निष्कर्ष

हीरा उद्योग में मंदी और diamond business की कठिनाइयों के बीच यह स्पष्ट है कि सरकार को जमीनी स्तर पर सोच बदलने की ज़रूरत है। अगर सही ढंग से इस योजना का प्रचार-प्रसार और संचालन किया जाए, तो यह हजारों जरूरतमंद परिवारों की आर्थिक मदद कर सकती है। भावनगर जैसे रत्नकला केंद्रों में यह योजना वरदान बन सकती थी, लेकिन फिलहाल यह अवसर चूकता हुआ नज़र आ रहा है।