Controversy over elephants in Nandini Math इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के शिरोल तालुका स्थित नंदनी मठ में रह रही हाथी ‘महादेवी’ को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने महादेवी हाथी को गुजरात के जामनगर स्थित रिलायंस फाउंडेशन द्वारा संचालित वंतारा रेस्क्यू सेंटर में भेजने का आदेश दिया था। लेकिन इस फैसले के विरोध में नंदनी गांव के लोग और मठ प्रशासन सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं।
ग्रामीणों का विरोध: “हमारी महादेवी यहीं रहेगी”
नंदनी के लोगों का साफ कहना है कि महादेवी हाथी को किसी भी हालत में गाँव से बाहर नहीं जाने दिया जाएगा। जब 25 जुलाई की रात यह खबर फैली कि वंतारा की एक टीम हाथी को लेने नंदनी पहुँच रही है, तो पूरा गांव सड़कों पर उतर आया। हज़ारों लोगों ने विरोध किया और शांतिपूर्ण मार्च भी निकाला गया। ग्रामीणों का मानना है कि महादेवी सिर्फ एक हाथी नहीं, बल्कि मठ की परंपरा और आस्था का प्रतीक है। यही कारण है कि Controversy over elephants in Nandini Math लगातार गहराती जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद मठ प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। 28 जुलाई को इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है, जिससे यह तय होगा कि महादेवी हाथी को वंतारा भेजा जाएगा या नहीं। इस फैसले पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं, खासकर नंदनी गांव के नागरिकों की।
पशु अधिकार बनाम धार्मिक परंपरा
यह विवाद केवल एक हाथी के स्थानांतरण का नहीं है, बल्कि इसमें दो बड़ी नैतिक बहसें शामिल हैं—पहली, जानवरों के जीवन की गुणवत्ता और उनके अधिकार; और दूसरी, धार्मिक परंपराओं में जानवरों की भूमिका। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा था कि पशु अधिकारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी माना कि जानवरों को ऐसे माहौल में रखना जहाँ उनकी देखभाल और स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्था हो, ज्यादा उचित है।
मठ की परंपरा: 1200 वर्षों की आस्था
नंदनी स्थित जैन मठ में महादेवी हाथी वर्षों से मठ की परंपरा का हिस्सा रही है। स्वस्तिश्री भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामी संस्थान द्वारा संचालित यह मठ पिछले 1200 वर्षों से धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। मठ से जुड़े लोगों का कहना है कि हाथी धार्मिक समारोहों और परंपराओं में भाग लेती रही है और उसे हटाना परंपरा को तोड़ने जैसा होगा।
वंतारा: जानवरों के लिए स्वर्ग
Controversy over elephants in Nandini Math के केंद्र में मौजूद दूसरा पक्ष है – वंतारा। यह एक विशाल वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र है, जिसे रिलायंस फाउंडेशन ने 3,500 एकड़ क्षेत्र में विकसित किया है। वंतारा को दुनिया का सबसे बड़ा पशु देखभाल केंद्र माना जा रहा है, जहाँ करीब 10,000 जानवर रहते हैं। इनमें बाघ, अजगर, मगरमच्छ, चिंपैंजी, नियोमैथुन और हाथी शामिल हैं।
यह केंद्र सिर्फ आश्रय ही नहीं देता बल्कि अत्याधुनिक चिकित्सा सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है, जैसे:
- एमआरआई और सीटी स्कैन मशीनें
- हाइड्रोथेरेपी पूल
- हाइड्रोजेट मसाज
- विशेष डाइट योजना
4 मार्च 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया था और यहाँ के चिकित्सा संसाधनों का निरीक्षण भी किया था।
सवाल उठता है – क्या धार्मिक मान्यताओं के लिए जानवरों को सीमित रखना सही है?
जब जानवरों के लिए एक अत्याधुनिक सुविधा केंद्र उपलब्ध है, जहाँ उनकी सेहत, खानपान और देखभाल के हर पहलू का वैज्ञानिक तरीके से ध्यान रखा जाता है, तो क्या केवल परंपरा के नाम पर उन्हें गाँव में ही रखना उचित है? यही सवाल आज न्यायपालिका और समाज दोनों के सामने है।
क्या होगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर टिकी हैं जो 28 जुलाई को आने वाला है। क्या कोर्ट वंतारा में बेहतर देखभाल को तवज्जो देगा या मठ की धार्मिक परंपरा को? यह फैसला केवल महादेवी हाथी के भविष्य का नहीं, बल्कि भविष्य में ऐसे कई अन्य मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा।
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निष्कर्ष
Controversy over elephants in Nandini Math अब केवल एक गाँव या एक हाथी तक सीमित नहीं रही। यह बहस बन चुकी है – जानवरों के अधिकारों, धार्मिक भावनाओं और वैज्ञानिक देखभाल के बीच संतुलन की। महादेवी हाथी का भविष्य अब न्यायपालिका के हाथों में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट किस पहलू को अधिक महत्व देता है – आस्था या अधिकार।