Bhavnagar: हीरा नगरी के नाम से मशहूर Bhavnagar न केवल अपने डायमंड इंडस्ट्री के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां का प्लास्टिक उद्योग भी शहर की आर्थिक रीढ़ है। हीरे के बाद यह Bhavnagar का दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है, जो पिछले करीब 60 वर्षों से हजारों लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है। अनुमान है कि यह उद्योग 20,000 से 25,000 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दे रहा है।
1965 में हुई थी Bhavnagar के प्लास्टिक उद्योग की शुरुआत
Bhavnagar Plastic Manufacturing Association के अध्यक्ष भूपतभाई व्यास के अनुसार, यह उद्योग वर्ष 1965 में अस्तित्व में आया था। तब से लेकर अब तक यह निरंतर विस्तार करता रहा है। इस उद्योग के अंतर्गत मुख्य रूप से मोनोफिलामेंट यार्न, प्लास्टिक रस्सियाँ, मछली पकड़ने के जाल, बाटिक के कपड़े और अन्य सहायक उत्पाद तैयार किए जाते हैं।
Bhavnagar में बने उत्पाद न केवल गुजरात और भारत के विभिन्न राज्यों में बेचे जाते हैं, बल्कि विदेशों में भी निर्यात होते हैं। खासतौर पर मछली पकड़ने के जाल और रस्सियाँ अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रसिद्ध हैं।
कोरोना महामारी ने किया था बड़ा असर
कोविड-19 महामारी के दौरान जब पूरे देश में लॉकडाउन था, तब Bhavnagar का यह उद्योग भी पूरी तरह ठप हो गया था। हालांकि, लॉकडाउन के बाद जब धीरे-धीरे चीजें सामान्य हुईं, तो कुछ समय तक पुराना माल बिकता रहा, लेकिन उसके बाद लगभग डेढ़ साल तक इस सेक्टर को मंदी का सामना करना पड़ा।
भूपतभाई व्यास बताते हैं कि श्रमिकों को काम देने के लिए उद्योगपतियों ने हर संभव प्रयास किया। कुछ लोगों ने अपनी मशीनें घर ले जाकर गृह उद्योग के तौर पर काम करना शुरू किया। Bhavnagar के आनंदनगर, कुंभारवाड़ा और बंदर रोड जैसे इलाकों में लोगों ने घरों में काम करके अपनी रोज़ी-रोटी चलाई।
Bhavnagar में 250 से ज्यादा मोनोफिलामेंट प्लांट
आज Bhavnagar में करीब 250 बड़े मोनोफिलामेंट प्लांट काम कर रहे हैं, जो कि मछली पकड़ने के लिए उपयोगी यार्न और प्लास्टिक उत्पाद तैयार करते हैं। यह यार्न विभिन्न उद्योगों में इस्तेमाल होता है, जैसे कि टेक्सटाइल, खेती और घरेलू उपयोग के उत्पादों में।
इस उद्योग की खास बात यह है कि इसमें इस्तेमाल होने वाला अधिकतर कच्चा माल स्थानीय रूप से ही उपलब्ध होता है, जिससे उत्पादन लागत कम रहती है और उद्योग की प्रतिस्पर्धा क्षमता बनी रहती है।
BIS नियमों से कारोबारी परेशान
हालांकि Bhavnagar के प्लास्टिक उद्योग को कुछ नई सरकारी नीतियों के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। भूपतभाई व्यास के अनुसार, सरकार द्वारा लागू किए गए BIS (Bureau of Indian Standards) नियमों के तहत अब केवल मानक गुणवत्ता वाले उत्पाद ही बनाए और बेचे जा सकते हैं।
लेकिन बाज़ार की डिमांड हल्के और सस्ते उत्पादों की अधिक है। इस कारण छोटे और मध्यम आकार के उद्योगों पर दबाव बढ़ रहा है। इसके अलावा चीन से आने वाले सस्ते उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करना भी इन स्थानीय उद्योगों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। आने वाले समय में यह स्थिति Bhavnagar के ROF (Rope & Open Fiber) सेक्टर को प्रभावित कर सकती है।
कारीगरों की भारी कमी
Bhavnagar के छोटे कारखानों को आज सबसे बड़ी समस्या श्रमिकों की कमी की है। कुंभारवाड़ा क्षेत्र में एक फैक्ट्री चलाने वाले चिरागभाई आचार्य बताते हैं कि उनके पास पहले खुद का प्लांट था, लेकिन कारीगरों की अनुपलब्धता और उत्पादन लागत बढ़ने के कारण उन्हें वह यूनिट बंद करनी पड़ी।
चिरागभाई कहते हैं कि भले ही ऑर्डर हों और संसाधन उपलब्ध हों, लेकिन प्रशिक्षित श्रमिकों की कमी के कारण काम समय पर पूरा नहीं हो पाता। भले ही सरकार द्वारा 50,000 से 1 लाख रुपये तक का ऋण भी मिले, लेकिन यदि कारीगर ही न हों, तो उत्पादन कैसे हो?
घर-घर बन रहा है रोजगार का साधन
Bhavnagar के कई मोहल्लों में महिलाएं और पुरुष अब घरों में ही मशीनें लगाकर प्लास्टिक की रस्सियाँ और तख्ते बना रहे हैं। यह एक तरह से घरेलू उद्योग का रूप ले चुका है, जिससे स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनने का मौका मिल रहा है।
यह ट्रेंड न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए द्वार खोल रहा है, बल्कि महिलाओं की आर्थिक भागीदारी भी बढ़ा रहा है। साथ ही, यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी सरकारी योजनाओं को भी मजबूती दे रहा है।
निष्कर्ष:
Bhavnagar का प्लास्टिक उद्योग एक ऐसा क्षेत्र है जिसने न केवल आर्थिक रूप से शहर को मजबूत किया है, बल्कि हजारों लोगों की जिंदगी भी संवारी है। महामारी की मार और नए सरकारी नियमों के बीच भी यह उद्योग टिकने की कोशिश कर रहा है। अगर सरकार की ओर से और सहयोग मिले और श्रमिकों को प्रशिक्षण देकर जोड़ा जाए, तो Bhavnagar का यह उद्योग एक बार फिर पूरे देश और दुनिया में नई ऊँचाइयाँ छू सकता है।