Junagadh History यानी जूनागढ़ का इतिहास, गुजरात की सांस्कृतिक धरोहर का बेहद महत्वपूर्ण अध्याय है। गिरनार पर्वत की तलहटी में बसा यह शहर सदियों से शासकों, संतों और यात्रियों का केंद्र रहा है। यहां मौर्यकालीन शिलालेख, राजपूतों के किले, जैन–हिंदू मंदिर और नवाबों के मकबरे देखने को मिलते हैं। यही वजह है कि जूनागढ़ को भारत के सबसे समृद्ध ऐतिहासिक नगरों में गिना जाता है।
प्राचीन जूनागढ़ का इतिहास
जूनागढ़ का इतिहास मौर्यकाल से शुरू होता है। ईसा पूर्व 250 में सम्राट अशोक ने यहां अपने प्रसिद्ध शिलालेख अंकित करवाए थे, जिनमें अहिंसा, नैतिकता और बौद्ध धर्म की शिक्षाएं दी गई थीं।
इसके बाद दूसरी से चौथी शताब्दी में यहां कषत्रप शासकों (Western Satraps) का शासन रहा। उनके समय का सबसे प्रमुख प्रमाण है राजा रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख, जिसमें सुदर्शन झील की मरम्मत का विवरण मिलता है। यह झील मूल रूप से चंद्रगुप्त मौर्य के काल में बनवाई गई थी।
अलग–अलग राजवंशों के अधीन जूनागढ़
जूनागढ़ ने शताब्दियों तक कई शासकों का शासन देखा और हर राजवंश ने यहां अपनी छाप छोड़ी।
काल / राजवंश | जूनागढ़ के इतिहास में योगदान | प्रमुख विशेषताएं |
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मौर्यकाल (ई.पू. 3री सदी) | अशोक के शिलालेख, बौद्ध धर्म का प्रसार | अशोक शिलालेख |
कषत्रप (ई. 2री सदी) | सिंचाई और जल–संचय कार्य | रुद्रदामन शिलालेख, सुदर्शन झील |
गुप्तकाल (ई. 4–6ठी सदी) | हिंदू मंदिर निर्माण | गिरनार के आसपास प्राचीन मंदिर |
चूड़ासमा वंश (ई. 9–15वीं सदी) | किले और कला का विकास | ऊपरकोट किला |
मुगल काल (ई. 16वीं सदी) | प्रशासनिक नियंत्रण, इस्लामी कला | मस्जिदें और मकबरे |
जूनागढ़ के नवाब (ई. 18–20वीं सदी) | आधुनिक भवन, महल, साहित्य और संगीत | महाबत मकबरा, महल, पुस्तकालय |
ऊपरकोट किला – जूनागढ़ का गौरव
Junagadh History की सबसे बड़ी धरोहर है ऊपरकोट किला, जिसे ई.पू. 319 के आसपास चंद्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था। यह किला 2000 साल से भी ज्यादा समय से अस्तित्व में है और कई बार घेराबंदी का सामना कर चुका है। किले के अंदर स्थित अडीकड़ी बावड़ी, नवघन कुआं और बौद्ध गुफाएं उस समय की जल–संचय तकनीक और धार्मिक जीवन का प्रमाण हैं।
नवाबों का दौर और सांस्कृतिक पहचान
18वीं से 20वीं सदी के बीच जूनागढ़ पर नवाबों का शासन रहा। इस दौरान शहर में शानदार महल, मकबरे और सार्वजनिक इमारतें बनीं। इनमें सबसे प्रसिद्ध है महाबत मकबरा पैलेस, जो इंडो–इस्लामिक और गॉथिक शैली का अद्भुत उदाहरण है। नवाबों ने साहित्य, संगीत और शिक्षा को भी प्रोत्साहन दिया।
गिरनार पर्वत – धार्मिक महत्व
जूनागढ़ का धार्मिक महत्व भी बेहद गहरा है। गिरनार पर्वत हिंदू, जैन और बौद्ध सभी के लिए पवित्र स्थान है। यहां दत्तात्रेय मंदिर, जैन मंदिर और बौद्ध गुफाएं हैं। यह धार्मिक विविधता जूनागढ़ के इतिहास की अनोखी पहचान है।
स्वतंत्रता और आधुनिक इतिहास
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में विलय की घोषणा की। लेकिन जनता के विरोध और सामरिक महत्व को देखते हुए 1948 में जनमत संग्रह के बाद जूनागढ़ भारत का हिस्सा बना। यह घटना जूनागढ़ के इतिहास में एक बड़ा मोड़ साबित हुई।
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आज के समय में जूनागढ़ का इतिहास क्यों महत्वपूर्ण है?
Junagadh History केवल शिलालेखों और किलों की कहानी नहीं है, बल्कि यह सहअस्तित्व, संस्कृति और प्रगति का प्रतीक है। आज जूनागढ़ को एक “ओपन म्यूज़ियम” कहा जा सकता है, जहां मौर्यकालीन धरोहर से लेकर नवाबी दौर की इमारतें तक सब कुछ देखने को मिलता है। यही कारण है कि यह शहर इतिहासकारों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
FAQs – जूनागढ़ इतिहास से जुड़े सामान्य प्रश्न
जूनागढ़ किस लिए ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध है?
जूनागढ़ अशोक के शिलालेख, ऊपरकोट किला, महाबत मकबरा और गिरनार पर्वत के लिए प्रसिद्ध है।
ऊपरकोट किला किसने बनवाया था?
ऊपरकोट किला ई.पू. 319 के आसपास चंद्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था।
जूनागढ़ के नवाबों का योगदान क्या था?
नवाबों ने महल, मकबरे, पुस्तकालय बनवाए और कला, संगीत व साहित्य को बढ़ावा दिया।
गिरनार पर्वत का महत्व क्या है?
गिरनार पर्वत हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पवित्र स्थल है।
जूनागढ़ भारत में कब शामिल हुआ?
जूनागढ़ 1948 में जनमत संग्रह के बाद भारत का हिस्सा बना।